Sanskrit Shlok with Hindi Meaning : भगवद्गीता, उपनिषद और अन्य वैदिक ग्रंथों के 25+ लोकप्रिय संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas) हिंदी अर्थ के साथ पढ़ें। जीवन बदलने वाले इन अनमोल वचनों से ज्ञान, धर्म और कर्तव्य का सही मार्ग जानें।
25 लोकप्रिय संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shlok with Hindi Meaning
धर्म, दर्शन और आध्यात्मिक ज्ञान का असीम भंडार है हमारे शास्त्र। यहाँ पेश हैं भगवद्गीता, उपनिषद और अन्य ग्रंथों से चुने गए 25 सबसे लोकप्रिय संस्कृत श्लोक उनके सरल हिंदी अर्थ के साथ, जो आपके जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।
भगवद्गीता के श्लोक (From Bhagavad Gita)
1. श्लोक
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ: तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, फलों में कभी नहीं। कर्म के फल का हेतु मत बन और न ही तुझे कर्म न करने में आसक्ति हो।
श्लोक:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
अर्थ: हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूँ (अवतार लेता हूँ)।
2. श्लोक:
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही॥
अर्थ: जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीरों को प्राप्त होती है।
3. श्लोक:
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
अर्थ: सज्जनों का उद्धार करने, दुष्कर्मियों का विनाश करने और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ।
4. श्लोक:
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
अर्थ: मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।
ईशावास्य उपनिषद (Ishavasya Upanishad)
5. श्लोक:
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्॥
अर्थ: यह सारा संसार ईश्वर से व्याप्त है। जो कुछ भी इस जगत में है, वह ईश्वर का ही है। इसलिए, त्याग की भावना से जीवन का उपभोग करो, किसी के धन का लालच मत करो।
विष्णु पुराण (Vishnu Purana)
6. श्लोक:
जन्मस्य हि यतो धर्मः स धर्मः परमो मतः।
अर्थ: जिस कारण से (मनुष्य का) जन्म हुआ है, वही उसका परम धर्म है। (अपने कर्तव्य का पालन ही सबसे बड़ा धर्म है)।
चाणक्य नीति (Chanakya Niti)
7. श्लोक:
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥
अर्थ: विद्या विनय देती है, विनय से योग्यता मिलती है, योग्यता से धन प्राप्त होता है, धन से धर्म का कार्य होता है और उससे सुख मिलता है।
मनु स्मृति (Manusmriti)
8. श्लोक:
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
अर्थ: धैर्य, क्षमा, मन पर नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रियों का निग्रह, बुद्धि, ज्ञान, सत्य और क्रोध न करना – ये दस धर्म के लक्षण हैं।
9. श्लोक
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
अर्थ: ओम! सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त हों, सभी मंगलमय घटनाएँ देखें और कोई भी दुःख का भागी न बने। ओम शांति, शांति, शांति!
10. श्लोक (गुरु मंत्र)
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अर्थ: गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही महेश्वर (शिव) हैं। गुरु साक्षात परब्रह्म हैं, उस श्री गुरु को मेरा नमन।
11. श्लोक
आचार्य देवो भव।
अर्थ: अपने आचार्य (गुरु) को देवता के समान मानो।
12. श्लोक
योगः कर्मसु कौशलम्।
अर्थ: कर्मों में कुशलता का नाम ही योग है। (दक्षता और निपुणता के साथ कर्म करना ही योग है)।
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14. श्लोक:
अहिंसा परमो धर्मः।
अर्थ: अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।
15. श्लोक:
सत्यमेव जयते नानृतम्।
अर्थ: सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं। (मुण्डक उपनिषद)
16. श्लोक:
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
अर्थ: हे प्रभु! मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
17. श्लोक
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थ: माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।
18. श्लोक
उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
अर्थ: कार्य उद्यम (मेहनत) से सिद्ध होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं। जैसे सोए हुए शेर के मुँह में हिरण स्वयं नहीं घुसते।
19. श्लोक
जीवेम शरदः शतम्।
अर्थ: हम सौ वर्षों तक जिएं। (स्वस्थ और कर्मशील जीवन की कामना)
20. श्लोक:
विद्या ददाति विनयम्।
अर्थ: विद्या विनय (अच्छा व्यवहार) प्रदान करती है।
21. श्लोक
अतिथि देवो भव।
अर्थ: अतिथि देवता के समान होता है। (तैत्तिरीय उपनिषद)
22. श्लोक
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।
अर्थ: हमारे पास सभी दिशाओं से अच्छे विचार और कर्म आएँ। (ऋग्वेद)
23. श्लोक
मातृ देवो भव। पितृ देवो भव।
अर्थ: माता को देवता समान मानो। पिता को देवता समान मानो।
24. श्लोक (महाभारत)
नास्ति विद्या समं चक्षुः।
अर्थ: विद्या के समान कोई दूसरी आँख नहीं है। (ज्ञान ही सब कुछ देखने की शक्ति देता है)
25. श्लोक:
धर्मो रक्षति रक्षितः।
अर्थ: जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
अस्वीकरण : अगर आपको किसी भी प्रकार का शंका हो, कि यह श्लोक गलत या सही है. तो आप नीचे दिए गए स्रोत के माध्यम से यह पता कर सकते हैं कि यह श्लोक गलत या सही है. हम आपको यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह श्लोक , यह मेरा अपना नहीं है लिया गया स्रोत और किताब का नाम और चैप्टर का नाम बताया गया है.
1 से 25 तक दिए गए प्रत्येक श्लोक का स्रोत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है:
- स्रोत: भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 47)
- स्रोत: भगवद्गीता (अध्याय 4, श्लोक 7)
- स्रोत: भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 22)
- स्रोत: भगवद्गीता (अध्याय 4, श्लोक 8)
- स्रोत: भगवद्गीता (अध्याय 6, श्लोक 5) [ध्यान योग श्लोक का एक भाग]
- स्रोत: ईशावास्य उपनिषद (श्लोक 1)
- स्रोत: विष्णु पुराण
- स्रोत: चाणक्य नीति
- स्रोत: मनु स्मृति
- स्रोत: मुण्डक उपनिषद, महोपनिषद आदि में पाया जाने वाला शांति मंत्र (सार्वभौमिक प्रार्थना)
- स्रोत: स्कन्द पुराण, गुरु गीता आदि में वर्णित गुरु स्तोत्र
- स्रोत: तैत्तिरीय उपनिषद (शिक्षावल्ली, अध्याय 11)
- स्रोत: भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 50)
- स्रोत: महाभारत (स्रोत वाक्य)
- स्रोत: मुण्डक उपनिषद (3.1.6)
- स्रोत: बृहदारण्यक उपनिषद (1.3.28)
- स्रोत: वाल्मीकि रामायण (अयोध्या काण्ड)
- स्रोत: पंचतंत्र / हितोपदेश (लोकप्रिय सुभाषित)
- स्रोत: श्रीमद्भागवत पुराण / ऋग्वेद (श्वेताश्वतर उपनिषद में भी समान भाव)
- स्रोत: चाणक्य नीति (श्लोक संख्या 8 का एक भाग)
- स्रोत: तैत्तिरीय उपनिषद (शिक्षावल्ली, अध्याय 11)
- स्रोत: ऋग्वेद (1.89.1)
- स्रोत: तैत्तिरीय उपनिषद (शिक्षावल्ली, अध्याय 11)
- स्रोत: महाभारत (वन पर्व) (लोकप्रिय सुभाषित)
- स्रोत: मनु स्मृति (8.15)